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समन्दर पार करने का प्रयास करता हूं,,,
राधा राणा की कलम से ✍️
,,,,,,
शहर-शहर,गली-गली ,तलाश करता हूं।
तेरे चेहरे को मैं अक्सर,याद करता हूं।
करना हो कुछ अगर,तो मैं सोचता नहीं,
अंज़ाम से हो बेफिक्र आग़ाज़ करता हूं।
पैरों तले दिखती है इन पर्वतों की ऊंचाई
अपने सामर्थ्य पे जब मैं विश्वास करता हूं।
तैरना आता नहीं, अच्छे से अभी मुझको
समंदर पार करने का,प्रयास करता हूं।
पर निकल आए हैं तेरे,जब लोग कहते हैं,
मैं आसमां में होने का, एहसास करता हूं।
हर बार नए शख़्स का दीदार होता है,
आईना जब जब चेहरे के,पास करता हूं।
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शहर-शहर,गली-गली ,तलाश करता हूं।
तेरे चेहरे को मैं अक्सर,याद करता हूं।
करना हो कुछ अगर,तो मैं सोचता नहीं,
अंज़ाम से हो बेफिक्र आग़ाज़ करता हूं।
पैरों तले दिखती है इन पर्वतों की ऊंचाई
अपने सामर्थ्य पे जब मैं विश्वास करता हूं।
तैरना आता नहीं, अच्छे से अभी मुझको
समंदर पार करने का,प्रयास करता हूं।
पर निकल आए हैं तेरे,जब लोग कहते हैं,
मैं आसमां में होने का, एहसास करता हूं।
हर बार नए शख़्स का दीदार होता है,
आईना जब जब चेहरे के,पास करता हूं।
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