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फिजाओं_में_सर्द_हवाएँ_घुल_रही_है
इश्क़ की फिजाओं में सर्द हवाएँ घुल रही है
हसीन मौसम में आजकल अदाएँ घुल रही है
नज़दीकियों की कहानी ज़रा आहिस्ता से रख
हमारी मुलाक़ातों में ये सर्द हवाएँ घुल रही है

बदलते हुए मिज़ाजों का ज़िक्र लबों पे छिड़ा
निगाहों की हया में बेहिसाब वफ़ाएँ घुल रही है
इश्क़ के रस्मों रिवाजों को चांदनी रातों से सजा
चढ़ते हुए खुमार में थोड़ी थोड़ी ख़ताएँ घुल रही है

मेरी ये सांसें ना जाने कब तेरी धड़कन बन बैठीं
इश्क़ की मसरूफ़ कहानी में दुआएँ घुल रही है
कहानी निशानी बनकर आज पन्नों पे उरती हुई है
इश्क़ की ये नोंक झोंक में कुछ सज़ाएँ घुल रही है

बेहिसाब बातें का अफ़्साने ठहरी रातों से कह गई
यूं ही नहीं वो आज इश्क़ की सर्द हवाएँ घुल रही है
ज़रा सी नज़दीकी से ही वो बिखरी बिखरी बैठी है
इश्क़ के बहानों में फ़साने की जफ़ाएँ घुल रही है

उलझे सुलझे इशारों की वो दास्तां समेटे रहें है
इश्क़ की फिजाओं में सर्द हवाएँ घुल रही है
इक मुलाकात ना जाने कितने रिश्तें बुन गई
बे-मौसम में आज इश्क़ की हयाएँ घुल रही है

© Ritu Yadav
@My_Word_My_Quotes
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