...

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मज़दूर
मजबूर है वो, नंगे पाँव चलने को।
खुला बदन ले,
तपती धुप में जलने को।
सर्द भरे दिनों में,
खुले आसमाँ तले, ठिठुरने को।
टपकती छतों वाले मकानों मे
सारी रात जगने को।
छाले पड़े हाथों में,
वे थाम लेते हैं औज़ारों को।
पर्वत का...