...

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माया
शून्य लोक के अन्त छोर पे हमने इक माया देखा,
छुपी हुई थी जो उसमें इक हमने वह काया देखा।
सब उसमें है ओ है सब में ऐसा रूपक भेद लिए,
ठहरी पर चंचलता है इक ऐसा हमने छाया देखा।

© abdul qadir

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