...

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शांति कि जद में
कृष्ण कहते हैं, शांति के लिए युद्ध जरूरी है।
लेकिन कब? क्यों क्या मजबूरी है?
युद्ध उनसे करो जो युद्ध को तत्पर हैं,
जो सहम के छुप गया, उस पर भी क्यों विपदा तारी है।
कुदरत को याद हैं आंसू,उस तीन साल के बच्चे के,
अंधेरे में मां की लाश पे बैठा है, रात भारी है।
कुदरत ने सुनी है आखिरी सांस लेती मां कि आह
जिसका अंश वीराने में बैठा है, उसकी जाने की बारी है।
मौत उसे खींच रही है, वो सिसक रही है,
अकेला छोड़ कर जाना,जान को उसकी लाचारी है।
बम गिराने वाले सोच किस की जमीन को किसके लिए जीता
दोनों ही मनुज हैं, दोनों की एक -सी ही दुनियादारी है।
ये धरा ये नियती, नियंत्रण खुद रखती है
तूने इसके राज में जो अहम की तलवार संवारी है।
नियती का नियम है, जो लिया है वो देना होगा,
जो दिया है तूने अब तक, वो अब लेने की बारी है।