...

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खामोश नज़रें
नजरे खामोश है पर बोल रही हैं।
जमाने की हकीकत तौल रही हैं।

कहाँ है मोहब्बत नफरत कहां है?
सब की निगाहें राज खोल रही हैं।

दिल में जज्बात जो भी बैठे हुए हैं।
उनकी उल्झन को ये खोल रही हैं

तमन्ना-ए-सैलाब उमड़ा हुआ है।
उनकी रंगत को ये घोल रही हैं।
© abdul qadir