...

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चाँद
आसमां की मुंडेर पर आकर
कभी आधा तो कभी पुरा
खिलता है चाँद..!

फिके और उदास मन में
चमकीला रंग
भरता है चाँद...!

छत पर आकर मेरे
रोज़ लुका छिपी
खेलता है चाँद..!

गांव की गली_गली में
शहर के नुक्कड़ पर बनकर दिया
देखो कैसे जगमगाता चाँद..!

भू_धरा के हर कोने
को शीतलता से
भरता है चाँद...!

तारों की महफ़िल में रहकर
रोज़ सज_ संवर कर
निकलता है चाँद..!

रोज रात चुपके से आता
नदियों के लहरों में उतरकर कितने
गोते लगाता चाँद..!

आसमां में जब सजती है महफ़िल
बन कर दुल्हन
देखो कैसे शरमाता चाँद..!