जननी
"सुबह मेरी हमेशा देर से हुई
उसकी सुबह में कभी देरी न हुई,
मैं सबकुछ भूल भी जाऊं
उससे कभी भूल से भूल न हुई,
मैं मेरे ही हिसाब किताब में उलझ जाता हूं
न जाने वो कैसे मुझे रास्ता निकाल कर देती है,
एक मां ही तो है जो तसल्ली से मेरी बात सुनती है
बिना थके सबसे पहले मुझे रखती है,
सब ऐसे ही...
उसकी सुबह में कभी देरी न हुई,
मैं सबकुछ भूल भी जाऊं
उससे कभी भूल से भूल न हुई,
मैं मेरे ही हिसाब किताब में उलझ जाता हूं
न जाने वो कैसे मुझे रास्ता निकाल कर देती है,
एक मां ही तो है जो तसल्ली से मेरी बात सुनती है
बिना थके सबसे पहले मुझे रखती है,
सब ऐसे ही...