...

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जननी
"सुबह मेरी हमेशा देर से हुई
उसकी सुबह में कभी देरी न हुई,
मैं सबकुछ भूल भी जाऊं
उससे कभी भूल से भूल न हुई,
मैं मेरे ही हिसाब किताब में उलझ जाता हूं
न जाने वो कैसे मुझे रास्ता निकाल कर देती है,
एक मां ही तो है जो तसल्ली से मेरी बात सुनती है
बिना थके सबसे पहले मुझे रखती है,
सब ऐसे ही चलता है जैसे सुबह सूर्य उगकर श्याम को ढलता है
लेकिन मां की कभी सुबह न देखी न श्याम देखी
जब भी उसे देखा वो माथे पर घर की चिंताएं लिए रहती है,
कहते है ईश्वर सभी जगह नहीं जा सकते सबकी समस्या सुलझाने
इसलिए उसने मां बनाई है,
लेकिन सच तो यह है खुद समस्याओं से बचने को सारा भार उसने मां को दे दिया
इंसान को समझने की उलझन से बचा रहे इसलिए मां का उसने भेजा है,
मां के आगे ईश्वर भी नतमस्तक है
मां है तभी तो घर, परिवार और समाज का अस्तित्व है।"