...

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में और मेरे सपने
जल रहा हूं अंदर से,
सुलग रहा हूं
दबे हुए जज्बात उमड़ पड़ते हैं
कभी कभी
सपनो को दफन कर दिया हूं कब से।
दुनिया में दुनियादारी की होड़ मची है,
सहम जाता हूं कभी कभी,
भीड़ में भी मिलूंगा अकेला
पास होकर भी अपने सभी।
हाल कुछ बन गया है, या फिर बना दिया
सोच रहा हूं,
जो मिला, वही अपना कर्म,
जो देखे सपने, वो सारे भ्रम!
लड़ता रहूंगा जब तक जीत नहीं जाता,
अपने बीते हुए कल को हरा नहीं देता।

© Dr. JPR