सियासत
कितने रंग बदलती हो तुम, कितने खेल दिखाती,
मस्ती में चलती हो तुम, इठलाती बल खाती।
जो बेरंग हो उन पर तुम, जादूभरी रंग जमाती,
जो रंगीन है निखरे हुए, उनके रंग भंग मिलाती।
द्वारे-द्वारे चर्चे तुम्हारे, नयनो की तुम बाती,
मस्ती में चलती हो तुम, इठलाती बल खाती।
जिन पर कृपा तुम्हारी बरसी, हो गए वे निहाल,
साथ तुम्हारा मिला...
मस्ती में चलती हो तुम, इठलाती बल खाती।
जो बेरंग हो उन पर तुम, जादूभरी रंग जमाती,
जो रंगीन है निखरे हुए, उनके रंग भंग मिलाती।
द्वारे-द्वारे चर्चे तुम्हारे, नयनो की तुम बाती,
मस्ती में चलती हो तुम, इठलाती बल खाती।
जिन पर कृपा तुम्हारी बरसी, हो गए वे निहाल,
साथ तुम्हारा मिला...