...

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सियासत
कितने रंग बदलती हो तुम, कितने खेल दिखाती,
मस्ती में चलती हो तुम, इठलाती बल खाती।

जो बेरंग हो उन पर तुम, जादूभरी रंग जमाती,
जो रंगीन है निखरे हुए, उनके रंग भंग मिलाती।
द्वारे-द्वारे चर्चे तुम्हारे, नयनो की तुम बाती,
मस्ती में चलती हो तुम, इठलाती बल खाती।

जिन पर कृपा तुम्हारी बरसी, हो गए वे निहाल,
साथ तुम्हारा मिला जिन्हें सब, हो गए मालामाल।
जिनका बिछुड़न होता तुम से, छाती मुंग दल जाती,
मस्ती में चलती हो तुम, इठलाती बल खाती।

तुम्हरे नयनों के इसारे पर, छुरियां है चल जाती,
जो तुम चाहो तो बेमौसम, बिजुरियां है गिर जाती।
जो तुम रुठ जाओ तो सब पर, है सामत आ जाती,
मस्ती में चलती हो तुम, इठलाती बल खाती।

तुम्हरे पीछे कितने बहके, कितने हुए लाचार,
कितने अपना घर फूंक आए, कितने गए मन हार।
पर तुम हो जैसी की तैसी, न ठिठकती, न शर्माती,
मस्ती में चलती हो तुम, इठलाती बल खाती।

© मृत्युंजय तारकेश्वर दूबे।

© Mreetyunjay Tarakeshwar Dubey