...

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धूप सुनहरी इश्क की,,,,,
हुवा है ज़िन्दगी में इश्क का सवेरा
कितना हसीं है मुकद्दर तेरा मेरा

कभी तो मिलेगी रौशनी हमें आकर
कब तक तड़पाएगा ये घना अंधेरा

क्यों रहे परिंदे इश्क के महदूद यहां
कभी चाँद के पार होगा हमारा बसेरा

धूप सुनहरी इश्क की भी छा जाएगी
वैदेही अभी तो हुवा है सिर्फ चंदेरा

© वैदेही