...

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अंतर्मन का द्वंद
इस मोहब्बत का... फलसफा क्या है...
है ये नुकसान... तो नफा क्या है...
वो तो रहता है... मुझमें "मैं" बनकर...
फिर ये थोड़ा सा... जुदा क्या है...
सौंप दी उसको...किताब ए दिल अपनी..
वो नहीं जो तो... फिर लिखा क्या है...
याद उसकी है... जो खिल गई मुझमें...
वो गया है तो... ये छिपा क्या है...
कहते हैं लोग... उजड़ गया है घर...
सच यही है तो... बसा क्या है...