...

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गर्दिश
गर्दिशों के बादल में
धूल उड़ाने का अपना मज़ा है
भीगता है मन जितना बारिश में
जल कर ज़माना धुआं धुआं है
और क्यूँ करुँ परवाह किसी की
जब सब बेपरवाह है
क्या सुनाना ग़म के किस्से
जब तक ज़िंदा दिली है
लड़खड़ाते है खुद के कदमो पर
और कोई गिर पड़े तो उठा देते है
ज़मीं से पुख्ता इरादे है
और आसमान जैसे अपनी मंजिल
© "the dust"