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रोटी
किसी को एक किसी को आधी किसी कि तो किस्मत ही थी खोटी
जो आज भी उसको ना मिल पाई रोटी।
रोया बहुत वो अंदर से और देह रही थी उसकी सूख़
आशा है मन में फिर भी कल मिट जाए शायद ये भूख।
फिर रोता देखा बच्चे को तो कांप गई थी उसकी रूह
कहां जाऊ, क्या करू जो रोटी लग पाए बच्चे के मुंह।
सब जगह है भारत बंद, बाहर जाओ तो मिलता है दंड
कर दिया सब खंड - खंड, अरे! बीमारी तू कैसी प्रचंड।
कभी हुआ ना मैं इतना मजबूर होकर भी प्रवासी मजदूर
बता क्या है मेरे बालक का दोष,
क्यों आज नहीं पा रहा मैं उसको पोष?
written by omita
जो आज भी उसको ना मिल पाई रोटी।
रोया बहुत वो अंदर से और देह रही थी उसकी सूख़
आशा है मन में फिर भी कल मिट जाए शायद ये भूख।
फिर रोता देखा बच्चे को तो कांप गई थी उसकी रूह
कहां जाऊ, क्या करू जो रोटी लग पाए बच्चे के मुंह।
सब जगह है भारत बंद, बाहर जाओ तो मिलता है दंड
कर दिया सब खंड - खंड, अरे! बीमारी तू कैसी प्रचंड।
कभी हुआ ना मैं इतना मजबूर होकर भी प्रवासी मजदूर
बता क्या है मेरे बालक का दोष,
क्यों आज नहीं पा रहा मैं उसको पोष?
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