मैत्री हो अर्धांगिनी हो अगर स्त्री हो तुम,
मैत्री हो अर्धांगिनी हो
अगर स्त्री हो तुम,
संगम हूं,
हक तुम्हारा मेरे तन मन धन पर
तो जीतना उसे, जताना मत।।
रूह हो धड़कन हो
अगर जान हो तुम
सफर हूं
हक तुम्हारा है मेरी ज़िंदगी पर
तो साथ चलना,पीछा छुड़ाना मत।।
मिलन के चाह में तड़फती काया
विरह के संद्रव मैं...
अगर स्त्री हो तुम,
संगम हूं,
हक तुम्हारा मेरे तन मन धन पर
तो जीतना उसे, जताना मत।।
रूह हो धड़कन हो
अगर जान हो तुम
सफर हूं
हक तुम्हारा है मेरी ज़िंदगी पर
तो साथ चलना,पीछा छुड़ाना मत।।
मिलन के चाह में तड़फती काया
विरह के संद्रव मैं...