मैत्री हो अर्धांगिनी हो अगर स्त्री हो तुम,
मैत्री हो अर्धांगिनी हो
अगर स्त्री हो तुम,
संगम हूं,
हक तुम्हारा मेरे तन मन धन पर
तो जीतना उसे, जताना मत।।
रूह हो धड़कन हो
अगर जान हो तुम
सफर हूं
हक तुम्हारा है मेरी ज़िंदगी पर
तो साथ चलना,पीछा छुड़ाना मत।।
मिलन के चाह में तड़फती काया
विरह के संद्रव मैं
बिलखती मेरी काया पर
बादल बन बरसाना,लेकिन तरसाना मत।।
सह लूंगा हर तकलीफ
तेरे संग हंसते हंसते
इश्क कि बिच राह में
साथ छोड़कर तुम चले जाना मत।।
कह दूंगा हर बात तुमसे
दिल अपने कि मस्ते मस्ते
अपनी मोहोब्बत की महफिल में
मेरे हंसते हुए चहरे को,तुम रुलाना मत।।
आराध्य हूं मगर
सत्यम शिवम् सुंदरम पर,
पुष्प के सुख दुख पर
प्यार पूरा है अधिकार पूरा है
मनोज से ऐसी कोई बात,छुपाना मत।।
© Manoj Vinod-SuthaR
अगर स्त्री हो तुम,
संगम हूं,
हक तुम्हारा मेरे तन मन धन पर
तो जीतना उसे, जताना मत।।
रूह हो धड़कन हो
अगर जान हो तुम
सफर हूं
हक तुम्हारा है मेरी ज़िंदगी पर
तो साथ चलना,पीछा छुड़ाना मत।।
मिलन के चाह में तड़फती काया
विरह के संद्रव मैं
बिलखती मेरी काया पर
बादल बन बरसाना,लेकिन तरसाना मत।।
सह लूंगा हर तकलीफ
तेरे संग हंसते हंसते
इश्क कि बिच राह में
साथ छोड़कर तुम चले जाना मत।।
कह दूंगा हर बात तुमसे
दिल अपने कि मस्ते मस्ते
अपनी मोहोब्बत की महफिल में
मेरे हंसते हुए चहरे को,तुम रुलाना मत।।
आराध्य हूं मगर
सत्यम शिवम् सुंदरम पर,
पुष्प के सुख दुख पर
प्यार पूरा है अधिकार पूरा है
मनोज से ऐसी कोई बात,छुपाना मत।।
© Manoj Vinod-SuthaR