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इक अलग सी आरज़ू हो रही है...........✍🏻
पता नहीं क्यों इक अलग सी आरज़ू हो रही है
आज मन ही मन में क्यों इतनी गुफ़्तुगू हो रही है
तमाम बातें इन लबों पर होकर भी मौजूद नहीं
फिर भी ना जाने क्यों इतनी जुस्तुजू हो रही है

वो एहसास-ए-बेफ़िक्री का ज़िक्र कुछ इस तरह
महबूब की हर ख़बर मुझसे यूं रू-ब-रू हो रही है
ये आरज़ू की कहानी ज़रा कश्मकश से भरी हुई
सवालों में उलझकर ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू हो रही है

उसे देखकर ना जाने...