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अमर दूत
अमर दूत

रग-रग रोम रोम में तू ही निजमन मेरा अभिभूत था।
मैं बदली या जग बदला,राज ये गहरा बडा अद्भुतथा।

विधाता ने ये तन गढ़ा था,मन कर्मन के वशीभूत था।
गुरू दृष्टि के स्पर्श मात्र से,पल में...