...

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तुम भी थे
पराए हम भी थे कभी पराए तुम भी थे
कश्मकश में थे हम घबराए तुम भी थे

इश्क़ के अकेले गुनहगार नही हैं हम
नज़र मिली थी तो मुस्कुराए तुम भी थे

हर कतरा शबनम गिना करते थे रातों में
राज़ खुला ये चांदनी में नहाए तुम भी थे

प्यास सदियों की निगाहों से झलक गई
मेरी बाहों में सिमट कसमसाए तुम भी थे

गर मिले फुर्सत पढ़ना तहरीरें दरिया की
मेरे एतबारों का हर्फ लगाए तुम भी थे

सकुची सिमटी सी मेरी लफ्जों की चादर
एहसासों के घूंघट में शर्माए तुम भी थे
© manish (मंज़र)