...

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कल-कल की बात
मुझे नहीं पता कि मैं
गलत था या वो सही थी
तय ये भी नहीं था
कि मैं जो समझा था उसे
वो भी वही थी
उसका लक्ष्य तो सागर ही था
वो बस
मेरे पर्वत से बही थी
किसे पता है कि
कल-कल की बात
उसे मैंने ही कही थी

© Ninad