...

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तुम मिल गए हो फिर से...
"तुम मिल गए हो फिर से, या मेरे ख्यालात ही है ऐसे...
न साथ थे तब भी साथ ही थे, अब हालात होगें कैसे..."
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आज भी याद कर लेते हैं, वो इस्तियार में छप कर आने वाले पल...
कतरने अखबार की सलीके से सजाकर, रख लेते थे कल...
बहुत बेरूखी रही तुम्हारी पर मैं एकतरफा हो कर आगे बढ़ता गया...
वक़्त गुजरकर कुछ लम्हे एसे भी आये...
कुछ अनहोनी का तूफान वो खबर लाये...
बस मान लिया अब तुम्हारी कसक मेें जीना हैं...
बेफ़िक्री से बढता चला गया बस गम को पीना था...
सब चाहते हो रही थी पूरी तेरे ना होने से...
तुम मिल गए...