...

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इंसान का सच
कुछ अजीब सा शहर है यह दुखों का कहर है
मैं चल रही हूं या रुक रही हूं कुछ समझ नहीं आ रहा मैं बून रही हूं या बूनी जा रही हूं
दोस्तों का मेला फिर भी दिल अकेला है
कई बार जफाओं को झेला है।
अब तो रुक जाओ कितनो को दगा दोगे कभी तो इंसानियत की खाल में आओ कब तक जानवर बने रहोगे।
पैसों की दुनिया में इंसान भी रहते हैं कभी कभी आसमानों से भगवान भी कहते हैं
मैंने तुझे...