...

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बेवफ़ाई ़़़़
तोड़ के दिल तुझे मिल क्या है
मेरे इस ज़ख़्म की दवा क्या है

तेरे ख़ातिर जहाँ को छोड़ा है
तू नहीं मेरा तो मिरा क्या है

इश्क़ फिर बेपनाह करने की
हमकों मालूम है सज़ा क्या है

मैं तो मौजूद तेरे दिल में हूँ
दर बदर फिर तू ढुंढता क्या है

तुझमें खुद को मैं देख लेता हूँ
फिर ये शीशा ये आईना क्या है

मयक़दे में न हो अगर साथी
यार बिन पीने में मज़ा क्या है

है अगर क़त्ल की सज़ा फांसी
'मुंतज़िर' इश्क़ की सज़ा क्या है