...

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ग़ज़ल
अदब से सर को झुका रहा हूँ ।
तुम्हारी महफ़िल से जा रहा हूँ ।।
मिलेगी मंज़िल पता नहीं पर ।
क़दम बराबर बढ़ा रहा हूँ ।।
यही नौकरी यही है तनख़्वाह ।
ज़रा सी इज़्ज़त कमा रहा हूँ ।।
बुलाऊंगा इक दिन ज़रूर तुमको ।
अभी मैं गुलशन सजा रहा हूँ ।।
न मुआफ़ करना कभी मुझे तुम ।
तुम्हीं से तुमको चुरा रहा हूँ ।।