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ज़ुल्फ़ों के साये
गुमनाम तुम्हारी शख़्सियत को आज अच्छा सा कोई मैं एक नाम दे दूँ,
कुछ पल गुज़ार लो इन ज़ुल्फ़ों के साये में तुम, मैं तुम्हें हसीं शाम दे दूँ !!

कितनी हसरतें लिए एक-एक लट‌ ज़ुल्फ़ों की खिल-खिल रही देखो ये,
तुम बारी-बारी चूम लो इन्हें, बदले में मैं तुम्हारी चाहतों को मुक़ाम दे दूँ !!
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