...

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ज़ुल्फ़ों के साये
गुमनाम तुम्हारी शख़्सियत को आज अच्छा सा कोई मैं एक नाम दे दूँ,
कुछ पल गुज़ार लो इन ज़ुल्फ़ों के साये में तुम, मैं तुम्हें हसीं शाम दे दूँ !!

कितनी हसरतें लिए एक-एक लट‌ ज़ुल्फ़ों की खिल-खिल रही देखो ये,
तुम बारी-बारी चूम लो इन्हें, बदले में मैं तुम्हारी चाहतों को मुक़ाम दे दूँ !!

आओ क़रीब इस क़दर कि उलझे ज़ज़्बात सारे आज ज़ुल्फ़ों के साये में,
छुपा कर ज़ुल्फ़ों में मेरी जान तुम्हें, लबों की ख्वाहिशों को अंजाम दे दूँ !!

दर्द-ओ-ग़म-ए-दिल का मरहम इन ज़ुल्फ़ों की छाँव तले, इस लम्हें में,
कि - शिफ़ा मिले, बेचैन-बेताब धड़कनों को आज कुछ तो काम दे दूँ !!

बिखरा कर ज़ुल्फ़ें तुम्हारे दिल की ज़मीं पर, चाहतों का आसमाँ बरसाऊँ,
कुछ इस तरह ताउम्र, चैन-ओ-सुकूँ भरे ये हसीं लम्हें तुम्हें तमाम दे दूँ !!
@Mayuri1609
© Mayuri Shah