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"कुछ ना पूछो"
ना कुछ पूछो!सच बात कहूं तो अब हो सकता है कि रो दूं मैं
हाल ए दिल से ही डरती हूं कि कहीं ख़ुद को ही ना खो दूं मैं.
इस आस में कि कोई तो वृक्ष बनकर सुकून की छाया देगा.
आख़िर दिल की ज़मीन पर उम्मीदों के कितने बीज बो दूं मैं
गिला है ये कि फूल का रूप बनाकर चुभे ही हैं कई कांटे.
दिल पर गहरे ज़ख्म कितने,भला अश्कों से कैसे धो दूं मैं।
मुश्किल है हकीकत कह सकूं सीधे, यकीन करे या ना कोई.
मेरा जीवन क्या है मेरा लेखन,न प्रमाण किसी को जो दूं मैं।
ना कुछ पूछो!सच बात कहूं तो अब हो सकता है कि रो दूं मैं.........
© Shivani Srivastava
हाल ए दिल से ही डरती हूं कि कहीं ख़ुद को ही ना खो दूं मैं.
इस आस में कि कोई तो वृक्ष बनकर सुकून की छाया देगा.
आख़िर दिल की ज़मीन पर उम्मीदों के कितने बीज बो दूं मैं
गिला है ये कि फूल का रूप बनाकर चुभे ही हैं कई कांटे.
दिल पर गहरे ज़ख्म कितने,भला अश्कों से कैसे धो दूं मैं।
मुश्किल है हकीकत कह सकूं सीधे, यकीन करे या ना कोई.
मेरा जीवन क्या है मेरा लेखन,न प्रमाण किसी को जो दूं मैं।
ना कुछ पूछो!सच बात कहूं तो अब हो सकता है कि रो दूं मैं.........
© Shivani Srivastava
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