...

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स्वीकार
#स्वीकार
अगर -मगर कुछ तो कहा होगा?
उसने स्वीकार कुछ तो किया होगा?
ऐसे ही जुड़ते है रिश्ते भी कहीं
मौन अधर और कसम जन्मों की?
बंध गया कैसे कोई बेनाम बंधनों में
खिला रहा कैसे गुल प्रीत के बंजरों में!
किस नमी का आखिर सहारा रहा होगा!
दिल लगाने वाले किस तरह दर्द सहा होगा?
मंजिल की नहीं आशा,
फिर भी नहीं निराशा,
चाहतों को कैसे क्या मुकाम दिया होगा?
किस तरह मौन स्वीकृति को अंजाम दिया होगा?
© रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"