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महाभारत का वह युग दोहराया जाएगा।
ये नापाक गिद्ध सी आंखे
मेरे लिबास को अपने ज़ेहन में चीरे जा रहीं हे,
ये कमजर्फ वासना में रिप्त दरिंदे,
अपनी आंखो से मेरे वस्त्र हरण कर रहें हे,
न कर्म का ज्ञान का धर्म का भय हे,
लगता हे फिरसे महाभारत का वह युग दोहराया जाएगा और
फिर से कृष्ण अंगवस्त्र से पांचाली का चरित्र बचेगा,
एवम पांचाली भी कौरव के खून से अपने केश धोएगी,
वहीं गाथा फिर से मानव समाज देखता रहे जाएगा,
धर्म की ये नापाक गिद्ध सी आंखे
मेरे लिबास को अपने ज़ेहन में चीरे जा रहीं हे,
ये कमजर्फ वासना में रिप्त दरिंदे,
अपनी आंखो से मेरे वस्त्र हरण कर रहें हे,
न कर्म का ज्ञान का धर्म का भय हे,
लगता हे फिरसे महाभारत का वहीं युग दोहराएगा
और
फिर से कृष्ण अंगवस्त्र से पांचाली का चरित्र बचेगा
और
एवम पांचाली भी कौरव के खून से अपने केश धोएगी,
वहीं गाथा फिर से मानव समाज देखता रहे जाएगा,
धर्म की संस्थापना करने फिरसे कल्कि का रूप धर कृष्ण आएगा।

© Poshiv
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