...

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सबकी उम्मीदें
#आदर्शितव्यक्तित्व
क्यों उससे हैं सबकी उम्मीदें,
कि वो सर्वगुण सम्पन्न हो,
वो भी इंसान ही है समझो,
स्वतंत्रता उसको भी तो हो,

वो भी चाहे मुस्कुराना,
किसी अपने का प्यार पाना,
बुरी चीजों से उसका भी तो,
दिल दुखता है,किसने जाना?

क्यों समझें सब उसको पत्थर,
जैसे रखोगे , वैसे रहेगी ?
हंसकर कब तक इस दुनियां के ,
जुलमों को वो यूं ही सहेगी ??

उसका भी तो एक ही जीवन,
फिर कब जीना शुरू करेगी?
दिल के अरमानों को कब तक ,
स्त्री दिल में लेकर मरेगी?

चार - दिवारी में क्यों उसको,
सिखलाया जाता है जीना ?
किसने तुमको हक दिया जो ,
आजादी को उसकी छीना?

सबकी बात नही है फिर भी,
स्त्रियां कुछ अब भी झेल रही हैं,
जीवन रूपी सागर में वो,
टूटी बेडा से तैर रही हैं ,

नैय्या डूबेगी मजधार?
या हो पाएगी ये पार?
कौन जानता है यहां?
किसको जाना है कहां?.....


© Munni Joshi