...

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इश्क की उम्र
बडा़ मासूम था, इश्क जब लड़कपन के घेरे में था
थोड़ा ज्यादा गहरा , सच्चाई पर ठहरा था
सर पर दीवानगी का सूरूर था
मिज़ाज में इशकपन भरपूर था
आंखों में उनकी तस्वीरों का गलियारा था
दिल भी बच्चा ज़रा प्यारा था
लड़कपन जब कटा
गहराइयां जब बढ़ी, जब परत इक हटी
सुखमय जीवन कट गए
अब सबकुछ बदलने लगा था
इश्कबाजी भी ढलने लगी थी
तब किसी तरजबकार ने बतलाया,
खुशियों के राज़ से अवगत करवाया
गर चलना हो साथ और मंजिल भी दूर हो
आहिस्ता चलना ही रिश्तों के लिए महफूज़ हो
यही बढ़ाता है रिश्तों का स्थायित्व ।



© preet