...

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वो जज़्बात सहेजते पन्ने.....
एक पन्ने का इंतजार होता था,
बसा साजन का प्यार होता था,
मां ने जो कुछ सवाल उठाया था ,
बेटे ने उसमें सब हाल सुनाया था,
गर किसी खबर की सूचना देनी थी,
या कोई पिता से अनुमति लेनी थी,
कितना आह्लादित होता था मन,
कभी पाकर उसे रोता था मन ,
कभी तो खुशी से उछल पड़ता था,
कभी चुपके से आंसू निकल पड़ता था,
जब मित्र से मसला कोई सुलझाना था,
खामोशी से बस वो पन्ना उसे दिखाना था,
बड़ी शिद्दत से लोग उसे भेजते थे,
वो चंद पन्ने ढेरों जज़्बात सहेजते थे,
जब से आया ऑनलाइन चैट का जमाना,
फिर पीछे छूटा चिट्ठियों का वो दौर पुराना...
~पल्लवी



© Pallavi srivastava