...

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एक दिन ढलता है..
वक़्त बचपन का हो या पचपन का
आज नहीं तो कल बदलता है

सौ सौ बार कहकर भी वो सुनते नहीं
शिकायत पर उनकी सिस्टम ऐसे ही चलता है

शायद उनके तानों में गानों की है ताल
इसलिए आज हालत सिस्टम की है बेहाल

इस पर उस पर सब पर है ये जिम्मेदारी
कदम उठाओ आवाज उठाओ यही तुम्हारी बारी

नहीं किसीने यह सिखाया पथ तुमको डरने का
फिर क्यों सच को कहने...