...

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शिव से मैं
जब से जानना देखना और सवाहाना शुरू किया है न जाने क्या क्या नहीं देखा है, पर,
सुकून सिर्फ शित देख कर मिला है,।-(1)


जब से चलना शुरू किया है न जाने कहाँ-कहाँ नहीं गया मैं पर,
जब पहुंचा बाब के दरबार तब मंजिल मिली ऐसा एहसास हुआ है।—(2)


बचपन से चीजे पकड़ उठा कर रखता रहा मगर, जब स्पर्श मेरा मेरे महादेव से हुआ तो एसा लगा है कि मैने अपने आप को छुआ है।-(3)

वैसे तो दिनभर कुछ-न-कुद्ध कहता ही रहता हूँ, मगर जब नाम महाकाल का जपना शुरू किया है मानो मृत्यू , लज्जा और भय पर मैने अपनी इच्छा का सैयम जमा लिया है।-(4)


जब से मैंने अपने शिव को आराध्य बनाया है,
सच कहू तो सारे संसार का प्रेम मैने अपने महादेव से पा लिया है।-(5)


अब क्रोध पर निमंत्रण है, वाणी पर शितलता, बाबा से प्रीत लगी तो मृत्यूं क् से मुक्ती मिली। अब मन में शून्य होता है, चहरे पे चमक, वाणी से हर प्राणी के लिए सह‌दभाव बाँटू ऐसी रहती है चाह।–(6)

मत पूछो क्या-क्या होता रहता है क्या करता हूँ मै उसपर, बस यूँ समझो महाकालू से हूँ मैं, मेरा बाबा है संभू।।–(7)

मुझे तकलीफ होती है तो पूछता है बाबा मेरा ,
मेरी हर खुशियों में साथ मेरे सग्न भी,
जब मैं गल्ती करू तो सम्हालत समझाता है मालिक मेरा,
सही करू तो प्रोत्साहन भी,
बस यूँ समझलो मैं हूँ म तो मृत्युलोक का , पर अन्तरमन से इस जग का हूं ही नहीं ।। (8)
मैं और.....
जय श्री महाकाल ॥
© लब्ज के दो शब्द