...

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मान ऐ रब
हम जैसे लोगो कि भी मान ओ! रब
हम पे थोङा कर दे ना अहसान, ओ रब
गुजरती ही नही है जिन्दगी ऐ
नही तो क्या करू ए बन्दगी ऐ
नही आने मै वाला रोशनी मै
नहीं जाने मै बाला बरहमी मै
अंधेरे से कहो अब छा भी जाना
मुकम्मल अब नही
अब आ भी जाना
मतलब ऐ भी नही तुझको बुलाऊं
मै खुद को आखिर खुद ही कैसे सुलाऊ
मैने आखो से देखी है हकीकत
नहीं करता है कोई कुछ सहूलत
सूरज है जिसे ही लौटना है
अमृत को नहीं बिष फूकना है
न मुकम्मल जिंदगी न रबाना
मै जानता हूँ ना तेरा आना जाने
मै तारो को चमकता देखता था
अब मजंर को बदलता देखता हूँ
वो कुछ कम है मै
मेरे अन्दर ज्यादा बङा हूँ
मै पर्वत तो नही फिर भी खङा हूँ
सच ने सच को आखिर मै सच्चा कहा है
ऐ आसमा चाँद ,तारो से ज्यादा बङा है
अपने अन्दरू को मत ओ खोलना ,रब
मुकम्मल छोङना ,मत छोङना रब,,
© Satyam Dubey