...

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जिन्दगी
इस सङक मे उस नदी मे
कुछ समंदर कुछ जज़ीरे
एक कली से फूल तक जाने मे लगते कितने पहरे
फूल तो आएगा जब तक
पत्तीया पहले मिलेगी
इस जमी से आसमा तक
विपत्तिया पहले मिलेगी
कहेगी वह कुछ न कुछ तो
जाने कैसे बात होगी
हाय !कैसी रात होगी
वह समंदर वह जज़ीरे
गाव कस्बे शहर होगे
कैसे बीते पहर होगे
किनारे से उस सफर तक
कितने रस्ते ,पार होगे
सब सफर बेजार होगे
नदी होगी या समंदर
खाइऐ होगी भयंकर
आखिर! कैसे चला होगा
लहू कितना बहा होगा
यातनाए किस से कही होगी
नदी जैसी बही होगी
है नही कोई सुनने वाले
बात अब किससे कहोगे
इस जमी से आसमा तक
इस किनारे से उस किनारे
पेङ होगे छाव होगी धूल होगी रेत होगी
न तो कोई सुनने बाला
न हो कोई मिलने वाला
अदम तक न सफर होगे
हाय! कैसे बसर होगे
ऐसी राहे अदम होगी

इस तरह से चले जीवन
हो ता है ऐसे बसर जीवन,,

© Satyam Dubey