...

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गुमनाम फिरती हू
कोहरे में अक्सर गुम दिखती हू
तुम्हें ढूँढती में अक्सर गुमनाम फिरती हूँ
जुल्फे उलझाए रहती हू
तुम्हारे बारे में कहती फिरती हू
याद करके आँखों का बुरा हाल करती हूं
न जाने कितनी धड़कनों में बस्ती फिरती हू
फिर भी क्यों
बेवफ़ा के लिए में पिघलती फिरती हू?

© meetali