...

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कसूर !!
मंज़िल भी उसी की थी,
रास्ता भी उसी का था ।।
साथ चलने की सोच भी उसकी थी,
राह बदलने का फ़ैसला भी उस का था ।।
हम तो महज़ कुछ वक़्त की जरूरत थे,
जिसे मोहब्बत होने का भ्रम हो गया था ।।
हमारी खामोशी उसको गुरूर और बातें बहस लगता था,
खुद बेवफ़ा होके हमसे वफा ना करने का शिकवा करता था ।।
खुद गुनाह करके भी खुदको बेकसूर केहता था,
बेवजह ही ज़िन्दगी को इल्ज़ामों में उलझाया था ।।
हां गलती शायद मेरी ही थी,
सारा कसूर भी मेरा था ।।
एक दिमाग वाले को हमने,
आपने दिल में जो जगह दिया था ।।

© dreamerpia


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