...

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◆ बेबसी श्राप "◆
निराशा और पीडाओं की डोर
जुड़ गयी है
पृष्ठ के पलटने से शायद
" एतद् " बदल पाता ,,

किन्तु ,,

आखिरी पृष्ठ पर
किताब बदलने से , कुछ
फर्क नही
क्यों कि , ,

जो भी आख़िरी
पन्ना होगा वो
" काल " का होगा
या कहूँ अंत होगा ,,

जीवन के उस आखिरी छोर
पर भी बैठा है
" काल " मुँह खोलकर
निगल जाने को हमें ,,

और हम बस स्वयं
फिसलते , चलते ,
रेंगते , लाचार होकर
होकर पहुंच जाते हैं उसके
पास ,, उसका
" ग्रास " बनने ,,

लेकिन हम नही होते प्राप्त
" मृत्यु "
को बल्कि ,,
रह जाते हैं हम उसके
" कृंतक और रदनक से
चर्वणक "
के मध्य फंसे हुए ,,

जैसे रह जाता है कोई अन्न
का दाना दाढ़ के बीच
जो न चबा जाता है
और न निकलता है
और न ही निगला जाता है , ,

बस ,,

ऐसे ही श्रापित हैं हम
" जीने "
के लिए !!

© निग्रह अहम् (मुक्तक )
【 Ghost With A Pen 】