...

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बड़े फैसले
बड़े फैसले लेने के लिए,
छोटे फैसले लेना शरू करना चाहिए,
लेकिन हम भारतीयों में इस चीज़ की कमी है,
छोटे छोटे फैसलों से ही सीखकर इंसान बड़े फैसले लेना सीख जाता है,
अगर बच्चा सोच कर कुछ फैसले लें भी लें तो उनको नजरअंदाज करदिया जाता है, या यह कहकर चुप करा दिया जाता तुम अभी छोटे हों, और वो छोटा 20 साल का होता है
नोकरी पक्की होने तक बच्चा माँ के अंचल में ही रेहता है।

इक बात और पहली बार में माता-पिता को सब कुछ चाहिए होता,
हार जाने के डर से अपने मन मुताबिक, तुम डॉक्टर बनना, तुम ये करना तुम वो करना, ये कभी नहीं पूछते बच्चे को किस चीज में दिलचस्पी है, जो दूसरों के बच्चे कर रहे होते हें उसे अपने बच्चे थोपते हें, फिर कहते हें मेरा बच्चा दुनियां दारी जनता ही नहीं।

जब अपने भविष्य को लेकर फैसले नहीं कर पाते हैं ये करते हें (आत्महत्या, सुसाइड, गलत आदतों के दायरे में आ जाना।


सब मिलकर उनके छोटे छोटे फैसलों को अहमियत देंगे तो वो सब कुछ कर लेगा जो हर इक माता-पिता चाहते हैं।


© SHezo_Writes