कभी तो
कुछ बातें मेरी भी
उसी खामोशी से सुन लेना
लेकर आंखों में रात यूं ही
मुस्कुराते कभी तुम जाग लेना
नहीं सुनना हो तो कम से कम
कभी इस बेजुबान के लफ्ज़ बनना
सांसें कभी हुआ करती थी तो
यूंही हवा तुम न हो जाना
कुछ बातें कहनी थी तुमसे
वापस से कहीं न सुन लेना
अनसुने तुम्हारे शिकायत...
उसी खामोशी से सुन लेना
लेकर आंखों में रात यूं ही
मुस्कुराते कभी तुम जाग लेना
नहीं सुनना हो तो कम से कम
कभी इस बेजुबान के लफ्ज़ बनना
सांसें कभी हुआ करती थी तो
यूंही हवा तुम न हो जाना
कुछ बातें कहनी थी तुमसे
वापस से कहीं न सुन लेना
अनसुने तुम्हारे शिकायत...