...

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मजदूर
*जिसके सहारे से बनी ये इमारतें उसी के मेहनत से ये घर है*
*जिसकी मेहनत से निकलते हैं रास्ते उसी की मेहनत से सर पर छत है*
*होता नहीं जो राहगीर वो मुफलिसी से मजबूर होता है*
*थोड़ा स्वावलंबी थोड़ा सा स्वाभिमानी वो मजदूर होता है*

कहानियां गढ़ी जाती हैं किरदार बनते है
इस जहां में भी अजब गजब स्वभाव बनते हैं
खड़े होते हैं महल कुछ आवास बनते हैं
कभी बनती है सड़क कभी विद्यावास बनते हैं

कहीं बनते हैं राजा कहीं रंक ए ख़ास बनते हैं
कहीं बनते हैं सिपाही कहीं दरबान बनते हैं
कहीं होती है खुशी कहीं उपहास बनते हैं
कहीं होता है दुख कहीं सुर्ख...