...

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सुकुन
सुकुन अब ना मिलता है मुहब्बत में, ना चाहत में...
ना पत्तों की सरसराहट में, ना बारिश की बूंदों की आहट में...

ना लिखने में, ना पढ़ने में....
ना जलने में , ना ढलने में...

ना बात करने में, ना गुमसुम रहने में...
ना विरोध करने में, ना सहने में...

ना आशा में, ना निराशा में...
ना सफलता में ना हताशा में।