...

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बेजुबान इश्क
लफ्जो में आवाज कहां,
मेरे ये जज्बात है;
अपना और बेगाना है ये,
दिल में दबी जो बात है।

चाह मुकम्मल कब हुई?
संपूर्ण समर्पण भाव से;
आगाज दोस्ती का बेहतर,
इस दर्द भरे अंजाम से।

राह चुनी जो कांटो वाली,
अब होना सब कुर्बान है;
कैसे कह दे उससे जाकर,
मेरा तो इश्क भी बेजुबान है।
© insinuation_pen✒️