...

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बेबस मजदूर
एक मजदूर है, ओर मजबूर है
दर्द दिल मै छिपे, मुख भी बे नूर है
पैर चप्प्ल नहीं, तन है कपड़ो बिना
राह चलते चलो,घर बड़ी दूर है

भूख पीडित है हम, पर ना पानी मिला
पैर छाले पड़े, पर ना उनसे गिला
आओ देखो, जरा तुम मेरे हाल को
तुमसा निर्दयी भी, कोई है होता भला

आग आँखो लगी, तन मै कई शूल है
ताणना के लिए, क्या हमी मूल है
कोई सुनता नही क्यो, मेरी दास्ताँ
मै हू मजदूर तो ,क्या मेरी भूल है

रोग लाए है वो, जो गए थे वहाँ
हम तो मजबूर थे, जो रहे थे यहाँ
उनको लाया गया है, वायुयान से
हमको बस भी नहीं है, तो जाए कहा