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बदल देना है मुझको।
बदल देना गर् हाथ होता,
तब बाल क्षण, वृध्द काल न् होता।
प्रारंभ हुआ है जीवन मेरा,
मृत्यु का फिर भाग्य न होता।
गर् बदल जाता;आचरण सर्वथा तब,
संस्कारों का भार न् होता।
मधुर क्षण को भी क्षण-क्षण आकर,
बिदाई का अपमान न् होता।
झीझक रहा है,
क्यों इनका तन मन;परिवर्तन का तूफान उठा है।
सुनो सुनाउ आसान रहा है,
यहा;साक्षी बन कर तुम रह जाना।
#writcopoem
@kamal
तब बाल क्षण, वृध्द काल न् होता।
प्रारंभ हुआ है जीवन मेरा,
मृत्यु का फिर भाग्य न होता।
गर् बदल जाता;आचरण सर्वथा तब,
संस्कारों का भार न् होता।
मधुर क्षण को भी क्षण-क्षण आकर,
बिदाई का अपमान न् होता।
झीझक रहा है,
क्यों इनका तन मन;परिवर्तन का तूफान उठा है।
सुनो सुनाउ आसान रहा है,
यहा;साक्षी बन कर तुम रह जाना।
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