शायद
मेरी सिखाई हुई मोहब्बत की हलाकत कर के
मेरे दस्त-ए-रस से बाहर गए तुम्हें ज़माने गुज़रे
शायद एक दिन तुम शोहरत की कर्बनाक शिद्दत से तंग आ कर
रुजू तो करोगे मगर वक़्त तुम्हारा मोहताज न होगा
शायद तुम्हारा रुख़्सार शिकन की सलवटों से घिरा होगा
शायद तुम्हारा मुर्दा ज़मीर चंद आख़िरी सांसें ले रहा होगा
शायद उन सांसों के दरमियान के वक़्फ़े में तुम्हें
मेरी पाकीज़ा मोहब्बत से की गई गुस्ताख़ियों पर पछतावा भी हो
शायद तुम्हारे ज़मीर की चंद सांसों को
मेरी बाअफ़ा साबित क़दम फ़रीफ़्ता यक तरफ़ा मोहब्बत ने ज़िंदा रखा हो
शायद तुम्हें गुज़री हुई हर वो लबरेज़ यादें सताने लगें
जिनको तुम बेज़ार हो के कोसा करते थे
शायद तुम लौटना चाहोगे शोहरत के मैदान को सरे आम छोड़ कर
शायद तुम्हारा अध मरा ज़मीर तुम्हें इजाज़त न दे
शायद तुम एक पल को सोचोगे
क्या तुम पूछे गए हर सवाल का जवाब दे पाओगे?
क्या तुम्हारे लफ़्ज़ों में इतनी ताक़त होगी
जो तुम्हारे गुनाहों की तारीख़ को माफ़ कर सके?
शायद तुम अपने ज़मीर से ये भी न पूछ पाओ
कि मेरी हर ख़ामोशी में एक जहां बस रहा था
जिसे तुम पल भर की शोहरत के लिये मीलों दूर छोड़ आए
शायद तुम इतना हौसला कर लो
कि अपने दिल से ये कह दो कि हर टूटी हुई क़सम
तुम्हारी ज़ुबान का झूठ था
शायद तुम्हारी हर धड़कन एक फ़रामोशी की दास्तान लिखती रही हो
और हर हरफ़ में तुम्हें अपनी ही ख़ामियां नज़र आएं
शायद तुम अपने आप से ये भी न पूछ पाओ
कि तुम अपने मुस्तक़बिल से रूबरू हो कर
अपनी बेवफ़ाई के क़िस्से सुना पाओगे?
शायद तुम्हारी आंखों में मोहब्बत का शहर अब उजड़ चुका होगा
और हर गली में सिर्फ़ बेवफ़ाई की ख़ाक उड़ रही होगी
क्या तुम अपने ही आबरू को शिकस्ता हालत में देख पाओगी?
शायद तुम्हारी रूह एक दिन इस थकन को महसूस करे
जो तुम्हारी बेमक़सद जाबिराना ख़ामोशियों में
मेरी आवाज़ें दब कर रह गई थीं
शायद तुम एक आख़िरी बार उस माज़ी को छूना चाहो
जो जाबिराना छोड़ दिया तुमने
मगर शायद अब तुम्हारे बदन में जवान जज़्बात न होंगे
शायद हर टूटी हुई मुस्कराहट में तुम अपनी शिकस्त की तस्वीर देख पाओगी
और तब तुम्हारा दर्द तुम्हें वक़्त की उस दीवार के पीछे नज़र आएगा
जहां तुमने एक जवान मोहब्बत का सरे आम गला घोंटा था
शायद एक दिन तुम्हारी आंखों में मेरी यादों की नमी छलक उठे
और तुम्हारी हर चीख़ ओ पुकार में मेरी मोहब्बत का असर उभरे
शायद तुम्हारे कानों में मेरे बताए गए हर लबरेज़ अल्फ़ाज़ गूंज रहे हों, और तुम्हारा सीना चीरते हुए हर बात तुम्हारे दिल और दिमाग़ से टकरा रही हो।
शायद तुम्हारे आंसू तुम्हारी बेवफ़ाई का सबूत बन चुके होंगे
और तुम्हारी नरम सिसकती सांसों में वो दर्द रहेगा
जो शायद तुमने कभी मेरे दिल से महसूस न किया हो
शायद तुम्हारे सूखे हुए कपकपाते होंठों पर
एक दिन सिर्फ़ पछतावा रह जाये
और तुम हर लफ़्ज़ से मेरी मोहब्बत को आवाज़ दो
मगर इस ज़ुबान में वफ़ा का वो ज़ोर न हो
शायद तुम मुड़ कर माज़ी ढूंढोगी
मगर वो शख्स फ़रीफ़्ता बाअफ़ा साबित क़दम
तुमसे मीलों दूर जा चुका होगा।
© ishfaq
मेरे दस्त-ए-रस से बाहर गए तुम्हें ज़माने गुज़रे
शायद एक दिन तुम शोहरत की कर्बनाक शिद्दत से तंग आ कर
रुजू तो करोगे मगर वक़्त तुम्हारा मोहताज न होगा
शायद तुम्हारा रुख़्सार शिकन की सलवटों से घिरा होगा
शायद तुम्हारा मुर्दा ज़मीर चंद आख़िरी सांसें ले रहा होगा
शायद उन सांसों के दरमियान के वक़्फ़े में तुम्हें
मेरी पाकीज़ा मोहब्बत से की गई गुस्ताख़ियों पर पछतावा भी हो
शायद तुम्हारे ज़मीर की चंद सांसों को
मेरी बाअफ़ा साबित क़दम फ़रीफ़्ता यक तरफ़ा मोहब्बत ने ज़िंदा रखा हो
शायद तुम्हें गुज़री हुई हर वो लबरेज़ यादें सताने लगें
जिनको तुम बेज़ार हो के कोसा करते थे
शायद तुम लौटना चाहोगे शोहरत के मैदान को सरे आम छोड़ कर
शायद तुम्हारा अध मरा ज़मीर तुम्हें इजाज़त न दे
शायद तुम एक पल को सोचोगे
क्या तुम पूछे गए हर सवाल का जवाब दे पाओगे?
क्या तुम्हारे लफ़्ज़ों में इतनी ताक़त होगी
जो तुम्हारे गुनाहों की तारीख़ को माफ़ कर सके?
शायद तुम अपने ज़मीर से ये भी न पूछ पाओ
कि मेरी हर ख़ामोशी में एक जहां बस रहा था
जिसे तुम पल भर की शोहरत के लिये मीलों दूर छोड़ आए
शायद तुम इतना हौसला कर लो
कि अपने दिल से ये कह दो कि हर टूटी हुई क़सम
तुम्हारी ज़ुबान का झूठ था
शायद तुम्हारी हर धड़कन एक फ़रामोशी की दास्तान लिखती रही हो
और हर हरफ़ में तुम्हें अपनी ही ख़ामियां नज़र आएं
शायद तुम अपने आप से ये भी न पूछ पाओ
कि तुम अपने मुस्तक़बिल से रूबरू हो कर
अपनी बेवफ़ाई के क़िस्से सुना पाओगे?
शायद तुम्हारी आंखों में मोहब्बत का शहर अब उजड़ चुका होगा
और हर गली में सिर्फ़ बेवफ़ाई की ख़ाक उड़ रही होगी
क्या तुम अपने ही आबरू को शिकस्ता हालत में देख पाओगी?
शायद तुम्हारी रूह एक दिन इस थकन को महसूस करे
जो तुम्हारी बेमक़सद जाबिराना ख़ामोशियों में
मेरी आवाज़ें दब कर रह गई थीं
शायद तुम एक आख़िरी बार उस माज़ी को छूना चाहो
जो जाबिराना छोड़ दिया तुमने
मगर शायद अब तुम्हारे बदन में जवान जज़्बात न होंगे
शायद हर टूटी हुई मुस्कराहट में तुम अपनी शिकस्त की तस्वीर देख पाओगी
और तब तुम्हारा दर्द तुम्हें वक़्त की उस दीवार के पीछे नज़र आएगा
जहां तुमने एक जवान मोहब्बत का सरे आम गला घोंटा था
शायद एक दिन तुम्हारी आंखों में मेरी यादों की नमी छलक उठे
और तुम्हारी हर चीख़ ओ पुकार में मेरी मोहब्बत का असर उभरे
शायद तुम्हारे कानों में मेरे बताए गए हर लबरेज़ अल्फ़ाज़ गूंज रहे हों, और तुम्हारा सीना चीरते हुए हर बात तुम्हारे दिल और दिमाग़ से टकरा रही हो।
शायद तुम्हारे आंसू तुम्हारी बेवफ़ाई का सबूत बन चुके होंगे
और तुम्हारी नरम सिसकती सांसों में वो दर्द रहेगा
जो शायद तुमने कभी मेरे दिल से महसूस न किया हो
शायद तुम्हारे सूखे हुए कपकपाते होंठों पर
एक दिन सिर्फ़ पछतावा रह जाये
और तुम हर लफ़्ज़ से मेरी मोहब्बत को आवाज़ दो
मगर इस ज़ुबान में वफ़ा का वो ज़ोर न हो
शायद तुम मुड़ कर माज़ी ढूंढोगी
मगर वो शख्स फ़रीफ़्ता बाअफ़ा साबित क़दम
तुमसे मीलों दूर जा चुका होगा।
© ishfaq