फितरत
अजीब है
फ़िलहाल ,
जहाज-ए-दस्तूर
कहा समझ पाया हूं मैं...,
इंसानी फितरत की नियत
यहां हर शब्द में खोट है
यहां हर सोच में मिलावट है ,
यहां हर सच में दिखावा है
क्योंकि.. जिंदगी तो बस..!
इमोशनल ब्लेकमैल प्लेग्राउंड
नोट-वोट-रोंग विथ गेम से चलती
वहां शक्ल से सीरत कहा ?
वहां नस्ल से संस्कार कहा ?
वहां वस्ल से समानता कहा ?
जहां पग-पग पर लोग....
चोट पहुंचाने की फ़िराक में बैठे हैं
वहां गिरगिट की तरह हर रोज
रंग-ढंग-शौक मुस्तैदी से बदलते है
वहां वक़्त को दोषी कैसे मानूं ?
ऐसी फिजुल की जिंदगी पाकर ,
बस दिखावटी-बनावटी-सजावटी
जैसा इंसान बनकर रह गया हूं
अब तौर-तरीकों में उलझकर ,
किसी के प्यार में टूट जाता हूं
किसी के एहसास में बिखर जाता हूं ,
किसी के रिश्तों में बिक जाता हूं
किसी के भावों में बंट जाता हूं
बदलते व्यवहारों में छेद करकर ,
किस किस के भेद सुनूं ?
किस किस के हुनर पढूं ?
किस किस के दुःख जानूं ?
स्वयं का अस्तित्व भूलकर ,
जब साथ-साथ थोड़ा चलता हूं
तब अक्सर क़दम डगमगाते है
अपनों के धोखें से ज़हर पीकर ,
भीतर से धीरे-धीरे मरता रहा
पर, बाहर से रेंगता रहा
मतलब के शहर आकर ,
प्रतिदिन नापता हूं संघर्ष
खुशियों की चाबी तक पहुंचने।
© -© Shekhar Kharadi
तिथि-११/४/२०२२, अप्रैल
फ़िलहाल ,
जहाज-ए-दस्तूर
कहा समझ पाया हूं मैं...,
इंसानी फितरत की नियत
यहां हर शब्द में खोट है
यहां हर सोच में मिलावट है ,
यहां हर सच में दिखावा है
क्योंकि.. जिंदगी तो बस..!
इमोशनल ब्लेकमैल प्लेग्राउंड
नोट-वोट-रोंग विथ गेम से चलती
वहां शक्ल से सीरत कहा ?
वहां नस्ल से संस्कार कहा ?
वहां वस्ल से समानता कहा ?
जहां पग-पग पर लोग....
चोट पहुंचाने की फ़िराक में बैठे हैं
वहां गिरगिट की तरह हर रोज
रंग-ढंग-शौक मुस्तैदी से बदलते है
वहां वक़्त को दोषी कैसे मानूं ?
ऐसी फिजुल की जिंदगी पाकर ,
बस दिखावटी-बनावटी-सजावटी
जैसा इंसान बनकर रह गया हूं
अब तौर-तरीकों में उलझकर ,
किसी के प्यार में टूट जाता हूं
किसी के एहसास में बिखर जाता हूं ,
किसी के रिश्तों में बिक जाता हूं
किसी के भावों में बंट जाता हूं
बदलते व्यवहारों में छेद करकर ,
किस किस के भेद सुनूं ?
किस किस के हुनर पढूं ?
किस किस के दुःख जानूं ?
स्वयं का अस्तित्व भूलकर ,
जब साथ-साथ थोड़ा चलता हूं
तब अक्सर क़दम डगमगाते है
अपनों के धोखें से ज़हर पीकर ,
भीतर से धीरे-धीरे मरता रहा
पर, बाहर से रेंगता रहा
मतलब के शहर आकर ,
प्रतिदिन नापता हूं संघर्ष
खुशियों की चाबी तक पहुंचने।
© -© Shekhar Kharadi
तिथि-११/४/२०२२, अप्रैल
Related Stories