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ऐसी हो गयी हूँ मैं
बोलती बहुत हूँ
पर मौन रहती हूं
क्योंकि
मेरे शब्दों की चोट तुम्हें
बहुत गहरी लगती है
जज्बातों का अंबार है
पर जताती नही
क्योंकि
तुम से चाहत की अब
कोई उम्मीद नहीं
नाजुक आइना हूँ
पर बिखरती नही
क्योंकि
तेरे दिए चोट को अब
मैं सहती नही
© ऋत्विशा
पर मौन रहती हूं
क्योंकि
मेरे शब्दों की चोट तुम्हें
बहुत गहरी लगती है
जज्बातों का अंबार है
पर जताती नही
क्योंकि
तुम से चाहत की अब
कोई उम्मीद नहीं
नाजुक आइना हूँ
पर बिखरती नही
क्योंकि
तेरे दिए चोट को अब
मैं सहती नही
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