...

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भुला कैसे दूँ मैं
अमर प्यार मेरा भुला कैसे दूँ मैं
तेरी याद दिल से मिटा कैसे दूँ मैं

छुपा के रखा है जिसे अपने दिल में
लिखी तेरी चिट्ठी जला कैसे दूँ मैं

नहीं कोई अच्छा मुझे और लगता
तुम्हें भूल जाऊं दगा कैसे दूँ मैं

न देखों मेरा ज़ख्म गहरा बहुत है
दिखा के तुम्हें ये रुला कैसे दूँ मैं

भरी रोशनी से मेरी ज़िंदगानी
दीया दिल का जलता बुझा कैसे दूँ मैं

जितेन्द्र नाथ श्रीवास्तव "जीत "
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