...

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....मै थक गई हूँ।
आज सोचती हूँ, की अब थोड़ी सी आह भर लूँ।
अब और कितना मरू? थोड़ा सा जी लूँ।
कितनी सतर्क रहूं, अब थोड़ी सी ढील दे दूँ।
लगता है शायद,अब मै थक गई हूँ।

हूँ इंसान, ना इंसानो सी मै बन सकी हूँ।
जीने की ललक में, जिन्दगीयों को ही छीन रही हूँ।
न जाने किसके लिए, आखिर किसके लिए मै ऐसी बन गई हूँ?
लगता है शायद,अब मै इंसान नहीं हूँ।

उनका साथ छोड़, मै तकनीक में फस गई हूँ।
सब पास है, न जाने फिर भी मै किन्हे...