...

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....मै थक गई हूँ।
आज सोचती हूँ, की अब थोड़ी सी आह भर लूँ।
अब और कितना मरू? थोड़ा सा जी लूँ।
कितनी सतर्क रहूं, अब थोड़ी सी ढील दे दूँ।
लगता है शायद,अब मै थक गई हूँ।

हूँ इंसान, ना इंसानो सी मै बन सकी हूँ।
जीने की ललक में, जिन्दगीयों को ही छीन रही हूँ।
न जाने किसके लिए, आखिर किसके लिए मै ऐसी बन गई हूँ?
लगता है शायद,अब मै इंसान नहीं हूँ।

उनका साथ छोड़, मै तकनीक में फस गई हूँ।
सब पास है, न जाने फिर भी मै किन्हे ढूंढ रही हूँ?
अपनो के बिना ही, अपनी दुनिया बनाने चली हूँ।
लगता है शायद, अब मै अपनो को भूल गई हूँ।

लड़ना तो आप से था, पर अपनो से लड़ गई हूँ।
कुछ पाने की चाह में, मै सबकुछ खो चुकी हूँ।
थोड़ा उठने की खातिर, मै हर नज़रो में गिर गई हूँ।
लगता है शायद, अब मै हार गई हूँ।

वो नासमझी वाले दौर को, तरस गई हूँ।
जो याद ना थे, वे यादे याद कर रही हूँ।
अब अपने साथ ही रहते-रहते, मै उब चुकी हूँ।
लगता है शायद, अब मै उन्हे पुकारने लगी हूँ।

आज लग रहा है जैसे, मै मरने लगी हूँ।
महसूस हो रहा है आज, मै उनके बगैर अकेली हो गई हूँ।
थोड़ा-थोड़ा ही सही, पर आज मै पुरी टूट गई हूँ।
लगता है शायद, अब मै थक गई हूँ।
#OpenMicContest