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कुछ ऐसी ख्वाहिश है मेरी
खाने के लिए कभी होटल जाने को ना कहूंगी
अपने हाथों से खिला देना वही काफी है
रहने के लिए महलों की फरमाइश ना करूंगी
जिस जगह आप रहोगे वह जगह महलों से कम ना होगी
हीरे पन्ने की जरूरत नहीं मुझे
हर पल आप मेरे साथ रहोगे यही काफी है मेरे लिए
लंदन पेरिस ख्वाहिश ना मेरी मेरा हाथ अपने हाथों में हरदम थामे रहना
चाहे वक्त की थपेड़े हो या लोगों का सितम बस इतनी सी गुजारिश है मेरी
बस इतनी सी ख्वाहिश है मेरी
मैं तुझ में तू मुझ में उम्र भर यूं खोए रहे इतनी सी इल्तिजा है मेरी।।
© Mamta
अपने हाथों से खिला देना वही काफी है
रहने के लिए महलों की फरमाइश ना करूंगी
जिस जगह आप रहोगे वह जगह महलों से कम ना होगी
हीरे पन्ने की जरूरत नहीं मुझे
हर पल आप मेरे साथ रहोगे यही काफी है मेरे लिए
लंदन पेरिस ख्वाहिश ना मेरी मेरा हाथ अपने हाथों में हरदम थामे रहना
चाहे वक्त की थपेड़े हो या लोगों का सितम बस इतनी सी गुजारिश है मेरी
बस इतनी सी ख्वाहिश है मेरी
मैं तुझ में तू मुझ में उम्र भर यूं खोए रहे इतनी सी इल्तिजा है मेरी।।
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